केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने तेलंगाना के सूर्यापेट में अपनी रैली में घोषणा की कि अगर भारतीय जनता पार्टी तेलंगाना में सरकार बनाती है, तो यहां का मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से होगा. इसी जनसभा में अमित शाह ने बीआरएस और कांग्रेस तेलंगाना पर हमला बोलते हुए कहा कि वे तेलंगाना का भला नहीं कर सकते सिर्फ बीजेपी के शासन काल में ही तेलंगाना का संपूर्ण विकास हो सकता है.
अमित शाह की यह घोषणा राजनीतिक रूप से काफी अहम मानी जा रही है, क्योंकि भाजपा आम तौर पर चुनाव परिणाम घोषित होने से पहले मुख्यमंत्री पद की घोषणा नहीं करती है. वहीं, आम तौर पर यह माना जाता है कि भाजपा जो भी वादा करती है, उसे पूरा करने की विश्वसनीयता रखती है.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि बीआरएस सुप्रीमो के.चंद्रशेखर राव ने भी सत्ता में आने पर अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के एक व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे पूरा नहीं किया, जबकि भाजपा ऐसी चुनावी चालें नहीं चलती है.
जाति जनगणना की मांग हिंदू मतदाताओं के गठबंधन को तोड़ने की कोशिश
उनका कहना है कि देश भर में किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों में यह बात सामने आई है कि अधिकांश लोग सामाजिक न्याय के माध्यम के रूप में जाति जनगणना के कांग्रेस की मांग को स्वीकार नहीं कर रहे हैं. अधिकांश लोग इसे राजनीतिक और सामाजिक सशक्तिकरण के रूप में देखने के बजाय जाति और समुदाय के आधार पर फैले हिंदू मतदाताओं के गठबंधन को तोड़ने के एक तरीके के रूप में देखते हैं.
इसलिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की यह घोषणा एक बड़ी राष्ट्रीय रणनीति है, जिसका उद्देश्य कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन के वादे में सरासर बेईमानी और झूठ को उजागर करना है. पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की भाजपा की प्रतिबद्धता पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के केंद्रीय मंत्रिपरिषद में पहले से ही प्रमाण के रूप में मौजूद है.
उम्मीदवारों में पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को विशेष तरजीह
उनका कहना है कि मोदी मंत्रिमंडल में 27 ओबीसी और 12 अनुसूचित जाति के मंत्री शामिल हैं, जो इसे अब तक की सबसे विविध मंत्रिपरिषद में से एक बनाता है. 22 अक्टूबर को भारतीय जनता पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए तेलंगाना के कुल 119 निर्वाचन क्षेत्रों में से 52 के लिए विधायक उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की.
इन 52 में से 38 सामान्य श्रेणी की सीटें थीं और भाजपा ने इनमें से 20 सीटें पिछड़े वर्गों को आवंटित कीं, जो कि आश्चर्यजनक रूप से 52 प्रतिशत है. अन्य 14 अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थे और इसलिए निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के अनुसार संबंधित समुदायों को आवंटित करने की आवश्यकता है.